आपको क्या लगता है? हमारे पूर्वज मुर्ख थे, बिल्कुल नही। उन दिनों कोई युद्ध कला और शक्तियां पाना किसी परिवार के लिए सीमित था। उस काल मे लोग अपनी विद्या अपने परिवार को छोड़के किसीको नही सिखाते थे। ताकि इस विद्या का उपयोग करने का वक्त आये तो पूरे विचार के साथ उपयोग हो।
ब्रम्हास्त्र क्या है?
ये वो अस्त्र है जिसके प्रयोग से पूर्ण विश्व नष्ट हो जाएगा। रामायण, महाभारत के युद्ध मे कई बार इस अस्त्र का उपयोग होने से रहा, क्यो की वीर समझदार थे और इस विश्व के प्रति और देवलोक के प्रति अपनी जिम्मेदारी उन्हें ज्ञात थी। दोनो विरोधी पक्षो में कई ऐसे वीर थे जो चाहते तो ब्रम्हास्त्र चला सकते थे, लेकिन नही चलाया। मेघनाथ, भगवान लक्ष्मण, भगवान श्रीराम, खुद्द रावण भी इन विद्याओ को जानते थे। महाभारत के भी कई वीर भी इसका प्रयोग जानते थे। लेकिन जब जब ये विद्या उन्होंने युद्ध मे इस्तेमाल करनी चाही, ब्रम्हाजी ने उन्हें अपने निर्णय का पुनर्विचार करने को कहा, और वे योद्धा ब्रम्हास्त्र चलाने से रुक गए।
कलियुग?
कलयुग में हम अपनी विद्याएं बाटते फिर रहे है लेकिन अच्छे लोगो के साथ साथ ये कई बुरे और मूर्खो के हाथ भी लग रही है। कलयुग का ब्रम्हास्त्र है सोशल मीडिया, जो पूरी मानवजाति को तबाह कर सकता है। कई मूर्खो के हाथों ये विद्या लगने के कारण इसका दुरुपयोग हो रहा है। संसार को बिगाड़ने पे कुछ लोग तुले हुए है। राजनीति, धार्मिक और तरह तरह के बीज इसके माध्यम से बड़ी तेजी से बोये जा रहे है।
ये घोर कलियुग है ऐसा कहा जाता है, ये बहुत प्रतिशत तक सही है। कही अगर बात बिगड़ने की थोड़ीसी भी गुंजाइश है, तुरंत बिगाड़ दी जाती है। आज बनाने वाले कम है, बिगाड़ने वाले ज्यादा है। चीज़े मीडिया में, टेलीविजन पर नमक-मिर्च-मसाला लगाकर पेश की जाती है। टेलीविजन के प्रस्तुतकर्ता चिल्ला चिल्लाकर हमारे जेहन में कई ऐसी बाते बिठा देते है जो असल मे होती ही नही है। इसी चिल्लाहट में हम खुद का असल मकसद भूल जाते है।
परिवारवाद
परिवारवाद की परिभाषा समयानुसार बदल दी गयी। परिवारवाद का असल मतलब था अनुशाषन, जिम्मेदारी। आज के परिवारवाद का मतलब है मेरे परिवार स्वार्थ, राज्य, पीढियो को बैठकर खाने को मिले, सब मेरे परिवार से नीचे हो। आज आप देख सकते है की कैसे राजनीतिक दलों में पूरे परिवार शामिल है। हर राजनीतिक का बेटा या बेटी उनकी जगह लेती है। कई लोग तो दूसरी राजनीतिक पार्टियों से टिकट लेकर राजनीति में उतरते है। एक ही परिवार के दो सदस्य अलग अलग पार्टी में। कार्यकर्ताओं की भावनावो से खेलते ये लोग कई सालों से उन्हें मूर्ख बनाते आ रहे है।
वो सभी क्षेत्र, जिसमे पैसा और नाम है, परिवारवाद चलता है। और इसी परिवारवाद के चलते नए उम्दा लोग पीछे रह जाते है। भारतीय फिल्म मीडिया भी इसी बात का शिकार है। पारिवारिक विद्या और जिम्म्मेदारी का किसी को खयाल नही, बस सब यही चाहते है की अपने परिवार के सिवा कोई आगे नही जाना चाहिए।
इसका मतलब यही हुआ कि आधुनिक काल मे सब कुछ उल्टा हो रहा है। जिम्मेदारिक चीज़े जो समाज को दुख पहुचा सकती है, वो सभी तरफ बट रही है। और जो चीज़ सभी का कल्याण कर सकती है वी किसी परिवार तक सीमित कर दी गई।