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मुखड़ा देख ले प्राणी Mukhada Dekh Le Prani Hindi Lyrics

Mukhada Dekh Le Prani: “मुखड़ा देख ले प्राणी” ये कवी प्रदीप की अप्रतिम रचनाओं में से एक है. इस रचना में कवी प्रदीप मनुष्य जाती को उसके पाप और पुण्य का हिसाब करने के लिए कह रहे है. खुद के कर्म का हिसाब रखने के लिए मनुष्य ने दर्पण में जरूर देखना चाहिए.

मुखड़ा देख ले प्राणी – Mukhada Dekh Le Prani

मुखड़ा देख ले प्राणी,
जरा दर्पण में हो,
देख ले कितना पुण्य है कितना,
पाप तेरे जीवन में,
देख ले दर्पण में,
मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में।।

कभी तो पल भर सोच ले प्राणी,
क्या है तेरी करम कहानी,
पता लगा ले,
पता लगा ले पड़े हैं कितने,
दाग तेरे दामन में
देख ले दर्पण में,
मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में।।

ख़ुद को धोखा दे मत बन्दे,
अच्छे ना होते कपट के धंधे,
सदा न चलता,
सदा न चलता किसी का नाटक,
दुनिया के आँगन में,
देख ले दर्पण में,
मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में।।

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