“अकेला बैठना चाहता हु (Akela Baithna Chahta Hu)” यह कविता लिखते समय कवी अपनी जिंदगी में बहुत उलझा हुआ है। आसपास रहने वाले लोग उसे कई तरह के सवाल पूछते, कई तरह के संकट-समाधान बताते। ऐसी घडी में कवी सोचता है की वो सक्षम है खुद के सवालो का जवाब ढूंढने में और सक्षम है हालातो पे काबू पाने में, बस उसे थोड़ी देर शांती चाहिए। और इसी शांती के लिए वो कही दूर जाकर कुछ देर के लिए ही सही पर खुद के साथ कुछ पल बिताना चाहता है।
अकेला बैठना चाहता हु
करके गुफ्तगू खुद से, थोड़ी देर अकेला चलना चाहता हु
दूर पहाड़ी पे किसी बड़े पत्थर पे मैं अकेला बैठना चाहता हु।
जिंदगी की उलझने बेकाबू है नसीब में,
रास्ते बड़े ही कांटो भरे है मंज़िल में,
उन्ही कांटो से लड़कर अकेला, आगे बढ़ना चाहता हु
दूर पहाड़ी पे किसी बड़े पत्थर पे मैं अकेला बैठना चाहता हु।
कोई साथ देता है, कोई हिम्मत देता है,
कोई कसमे देता है, कोई वादे देता है,
सच्चें झूटे सबको ठुकरा देना चाहता हु
दूर पहाड़ी पे किसी बड़े पत्थर पे मैं अकेला बैठना चाहता हु।
सोचता हूं कि सोचने के लिए जगह चाहिए,
थोड़ी देर अलग बैठने की वजह चाहिए,
उसी वजह की तलाश में अकेला, बस निकल पड़ता हु
दूर पहाड़ी पे किसी बड़े पत्थर पे मैं अकेला बैठना चाहता हु।
– किशोर माळी
Akela Baithna Chahta Hu
Karke Guftgu Khud Se, Thodi Der Akela Chalna Chahta Hu
Dur Pahadi Pe Kisi Bade Patthar Pe Akela Baithna Chahta Hu
Jindagi Ki Ulzane Bekabu Hai Nasib Me,
Raste Bade Hi Kanto Bhare Hai Manjil Me,
Unhi Kanto Se Ladkar Akela, Aage Badhna Chahta Hu,
Dur Pahadi Pe …
Koi Sath Deta Hai, Koi Himmat Deta Hai,
Koi Kasme Deta Hai, Koi Vaade Deta Hai,
Sacche Zhute Sabko Thukra Dena Chahta Hu,
Dur Pahadi Pe …
Sochta Hu Sochne Ke Liye Jagah Chahiye,
Thodi Der Alag Baithne Ki Wajah Chahiye,
Usi Wajah Ki Talash Me Akela, Bas Nikal Padta Hu,
Dur Pahadi Pe Kisi Bade Patthar Pe Akela Baithna Chahta Hu
— Kishor Mali