Aaj Ke Insaan Ko Yeh Kya Ho Gaya : “आज के इस इंसान को ये क्या हो गया” ये कवी प्रदीप की अप्रतिम रचनाओं में से एक है. कवी को ये बताते हुए दुःख हो रहा है की आज का इंसान धर्म और जाती के नाम पे एक दूसरे की जान का दुश्मन बना हुआ है. इंसानियत भूल चूका है.
आज के इस इंसान को ये क्या हो गया – Aaj Ke Insaan Ko Yeh Kya Ho Gaya
आज के इस इंसान को,
ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार,
कहाँ पर खो गया।।
कैसी यह मनहूस घडी है,
भाइयो में जंग छिड़ी है,
कहीं पे खून कहीं पर ज्वाला,
जाने क्या है होने वाला,
सब का माथा आज झुका है,
आजादी का जलूस रुका है,
चारो और दगा ही दगा है,
हर छुरे पर खून लगा है,
आज दुखी है जनता सारी,
रोते है लाखों नर नारी,
रोते हैं आँगन गलियारे,
रोते आज मोहल्ले सारे,
रोती सलमा रोती है सीता,
रोते है कुरआन और गीता,
आज हिमालय चिल्लाता है,
कहाँ पुराना वो नाता है,
ढस लिया सारे देश को जहरी नागो ने,
घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने।।
आज के इस इंसान को,
ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार,
कहाँ पर खो गया।।
अपने देश था वो देश था भाई,
लाखों बार मुसीबत आई
इंसानों ने जान गवाई,
पर बहनों की लाज बचाई
लेकिन अब वो बात कहाँ है,
अब तो केवल घात यहाँ है,
चल रही हैं उलटी हवाएँ,
कांप रही थर थर अबलाये,
आज हर एक आँचल को है खतरा,
आज हर एक घूँघट को है खतरा,
खतरे में है लाज बहन की,
खतरे में चूड़ीया दुल्हन की,
डरती है हर पाँव की पायल,
आज कहीं हो जाए न घायल,
आज सलामत कोई न घर है,
सब को लुट जाने का डर है
हमने अपने वतन को देखा,
आदमी के पतन को देखा,
आज तो बहनों पर भी हमला होता है,
दूर किसी कोने मे मजहब रोता है।।
आज के इस इंसान को,
ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार,
कहाँ पर खो गया।।
किस के सर इलजाम धरे हम,
आज कहाँ फरियाद करे हम,
करते है जो आज लड़ाई,
सब के सब है अपने ही भाई,
सब के सब है यहाँ अपराधी,
हाय मोहब्बत सबने भुलादी,
आज बही जो खून की धारा,
दोषी उसका समाज है सारा,
सुनो जरा ओ सुनने वालो,
आसमान पर नजर घुमा लो,
एक गगन मे करोडो तारे,
रहते है हिलमिल के सारे,
कभी ना वो आपस मे लड़ते,
कभी ना देखा उनको झगड़ते,
कभी नहीं वो छुरे चलाते,
नहीं किसी का खून बहाते,
लेकिन इस इंसान को देखो,
धरती की संतान को देखो,
कितना है यह हाय कमीना,
इसने लाखो का सुख छीना,
की है जो इसने आज तबाही,
देगें उसकी यह मुखड़े गवाही,
आपस की दुश्मनी का यह अंजाम हुआ,
दुनिया हसने लगी देश बदनाम हुआ।।
आज के इस इंसान को,
ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार,
कहाँ पर खो गया।।
कैसा यह खतरे का पहर है,
आज हवाओ मे भी जहर है,
कही भी देखो बात यही है,
हाय भयानक रात यही है
मौत के साए मे हर घर है,
कब क्या होगा किसे खबर है
बंद है खिड़की बंद है द्वारे,
बैठे हैं सब डर के मारे,
क्या होगा इन बेचारो का,
क्या होगा इन लाचारो का
इनका सब कुछ खो सकता है,
इनपे हमला हो सकता है
कोई रक्षक नजर ना आता,
सोया है आकाश पे दाता
ये क्या हाल हुआ अपने संसार का,
निकल रहा है आज जनाजा प्यार का।।
आज के इस इंसान को,
ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार,
कहाँ पर खो गया।।