हां तो भाई, सबको पहलेही बतादू की ये जो पोस्ट है वो केवल एक अनुमान है| इसमें मैंने खुद कोई खोज नहीं की है| केवल घटनाओ और मौजूद जानकारी के आधार पर मै ये लिख रहा हु|
प्राचीन काल से चले आ रहे और ८००० साल पुराणी भारतीय सभ्यता को कई लोग धर्म के आधार पर बदनाम करते है| कहते रहते है की भारतीय लोक और सभ्यता पूर्णता धर्म से जुडी है, विज्ञान से इनका कोई लेना देना नहीं| लेकिन बहुत सारी चीज़े ऐसी है की सोचो तो आपको पता चल जायेगा की हर एक चीज़ विज्ञानं से जुडी हुई है|
ये भी बतादू की ये बात सिर्फ भारतीय सभ्यता या फिर हिन्दू धर्म की नहीं है| ये उन सभी सभ्यताओं के बारे में है और सभी धर्मो के बारे में है जो मानवजात की भलाई के लिए बनाये गए थे| माना की बाद में धर्म के रक्षको ने मिलकर इसमें अपने हिसाब से जहर घोल दिया हो लेकिन शुरुवात में इनका उद्देश्य अच्छा ही रहा होगा|
भगवान् की जरुरत क्यों?
जैसे की आप आज भी अपने आसपास देखते होंगे, भगवान् के नाम से जितनी चेतना लोगो में आती है वो किसी भी चीज़ से नहीं आती| जब भगवान् या धर्म की बात होती है तो बाकि सब चीज़े लोगो को छोटी लगती है| बस इसी बात को ध्यान में रखके भगवान की निर्मिति की गयी होगी और लोगो को विज्ञानं से जोड़ने का प्रयास किया गया होगा|
जल्द सोना, जल्द उठना
आज विज्ञान हर तरफ से चिल्ला चिल्ला के बोल रहा है की जल्दी सोना है, जल्दी उठना है, क्यों भाई? भारतीय सभ्यता बोलती है तब तो आपको बड़ी मिर्च लगती है? सुबह उठ के तुलसी वृन्दावन के आजु-बाजु घूमना तो आपको गवाँरो का काम लगता है? शुद्ध ऑक्सीजन की बात तो विज्ञान ने बताई| क्या ये चीज़ हमारे पूर्वजो को ध्यान में नहीं आयी होगी? आयी थी, मगर लोग भगवान के नाम के सिवा कुछ मानने के लिए शायद राजी नहीं होंगे, इसलिए उन्होंने इसे धर्म की आस्था से जोड़ दिया| आज भी कई स्त्रियाँ तुलसी वृन्दावन को फेरे लगाती है, जो उन्हें शुद्ध ऑक्सीजन देता है|
मांसाहार और हिंसाचार
पुरातन काल में लोग खेती करना नहीं जानते थे अत: उन्होंने जानवरो को अपना खाद्य बनाया हुआ था| विज्ञानं कहता है की अति मांसाहार या तीखा खाने से इंसानो में या किसी भी जानवर में हिंसक प्रवृत्ति पैदा होती है| निरंतर सेवन करने से इंसान भी हिंसक बने हुए थे| जानवरो जैसा बर्ताव करने वाले इंसानो के खाने के तरीके बदलने हेतु इन्हे शाकाहार का महत्व समझाया गया होगा| लोगो ने शाकाहार पे विश्वास रखना चाहिए इसलिए शाकाहार को धर्म से जोड़ा गया और मांसाहार को अधर्म से| आज भी आप अपने आसपास देखेंगे तो मांसाहार करने वाले इंसान और जानवर दोनों शाकाहारियों से थोड़े ज्यादा हिंसक होते है|
शाकाहार और प्रेम
जैसे ही इंसानो को खेती का ज्ञान हुआ, उन्होंने खेतीबाड़ी करना शुरू किया होगा| खेती की वजह से शाकाहार को बढ़ावा मिला और इंसान की हिंसक प्रवृत्ति में थोड़ा फर्क आया| अब इंसान सामाजिक होने लगा था| उन्होंने पूर्व हिंसाचार और प्राणी हत्या को कम कर दिया| गाय को पूज्य करने का क्या मतलब था? सबसे आसान शिकार और ज्यादा मांस तो गाय और बैल से ही मिलता था| हिंसाचार को रोकना है तो इनका पूज्य होना जरुरी था| इंसान को एक दूसरे के काम आने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए भी कुछ चीजे की गई होगी| शाकाहार उन्ही में से एक है|
वैज्ञानिक भक्ति
विज्ञान कितनाही क्यों न आगे चला जाये, ये तो नहीं नकार सकता की सबसे बड़ी पुरातन सभ्यता पूरी तरह अंधश्रद्धालू नहीं है| सोलर एक्लिप्स बोलते है लोग, नासा की बड़ी बड़ी दूरबीनो से देख के सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण के बारे में बात करते है| क्या पुरातन काल से हिन्दू पंचांग के हिसाब से सूर्य और चंद्र ग्रहण नहीं बताये गए? इजिप्त की पिरामिड की रचनाये हजारो साल पहले चंद्र की कक्षाओं को ध्यान में रख के की गयी थी| क्या इसके पीछे विज्ञान नहीं था? अगर इजिप्शियन लोग उनके प्राचीन विज्ञानं का इस्तेमाल करेंगे तो क्या वो वैज्ञानिक नहीं है? वैसे ही अगर हम हमारी पुराणी सभ्यता का इस्तेमाल करेंगे तो क्या है हम वैज्ञानिक नहीं?
आज से ६०० साल पहले निकोलस कोपर्निकस नाम के आदमी को कुछ मुट्ठीभर लोगो ने धर्म के नाम पर इसलिए फांसी दी क्यों की वो सूरज को विश्व का केंद्र बता रहा था वो तो हमारे पंचांगों में पहले से मौजूद है| और आज वही लोग सूरज को फिरसे केंद्र बता रहे है| हमसे विज्ञानं की बाते कर रहे है| हसी तो आएगी ही|
थोड़ी ज्यादा जानकारी चाहिए होगी तो मनोज कुमार की “पूरब और पश्चिम” देख लेना|