Pinjare Ke Panchi Re : “पिंजरे के पंछी रे” ये कवी प्रदीप की अप्रतिम रचनाओं में से एक है. बड़े दुखी मन से कवी भगवान को बोल रहे है की उन्होंने उत्पन्न किया हुआ इंसान कितना बदल गया है. सच्चाई का मार्ग छोड़ कर बुराई की राह पर चल पड़ा है.
पिंजरे के पंछी रे – Pinjare Ke Panchi Re
पिंजरे के पंछी रे,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
बाहर से तो खामोश रहे तू,
भीतर भीतर रोए रे,
भीतर भीतर रोए,
तेरा दर्द ना जाणे कोए।।
कह ना सके तू,
अपनी कहानी,
तेरी भी पंछी,
क्या जिंदगानी रे,
विधि ने तेरी कथा लिखी,
आँसू में कलम डुबोय,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
तेरा दर्द ना जाणे कोए।।
चुपके चुपके,
रोने वाले,
छुपाके रखना,
दिल के छाले रे,
ये पत्थर का देश है पगले,
कोई ना तेरा होय,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
तेरा दर्द ना जाणे कोए।।
पिंजरे के पंछी रे,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
बाहर से तो खामोश रहे तू,
भीतर भीतर रोए रे,
भीतर भीतर रोए,
तेरा दर्द ना जाणे कोए।।