Tut Gayi Hai Mala: “टूट गयी है माला” ये कवी प्रदीप की अप्रतिम रचनाओं में से एक है. इस रचना में कवी प्रदीप मनुष्य जाती को उसके जीवन में रिश्तो का कितना महत्त्व है ये बताते है. इस संसार में आकर इंसान किस तरह अकेला है और कितना व्यथित है ये वो बताते है.
टूट गयी है माला – Tut Gayi Hai Mala
टूट गयी है माला,
मोती बिखर चले,
दो दिन रह कर साथ,
जाने किधर चले।।
मिलन की दुनिया छोड़ चले यह,
आज बिरह मे सपने,
मिलन की दुनिया छोड़ चले यह
आज बिरह मे सपने,
खोए खोए नैनों मे हैं,
उजड़े उजड़े सपने,
उजड़े उजड़े सपने,
याद की गठरी लिए,
झुकाए नज़र चले,
दो दिन रह कर साथ,
जाने किधर चले।।
अब तो यह जग मे जियेंगे,
आँसू पीते पीते,
अब तो यह जग मे जियेंगे,
आँसू पीते पीते,
जैसी इनपे बीती वैसी,
और किसी पे ना बीते,
और किसी पे ना बीते,
कोई मत पूछो इन्हें लिए,
किस डगर चले,
दो दिन रह कर साथ,
जाने किधर चले।।
टूट गयी है माला,
मोती बिखर चले,
दो दिन रह कर साथ,
जाने किधर चले।।
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